हनुमान जी ने क्यों धारण किया पंचमुखी रूप - जानिए पूरी कहानी ?


गोस्वामी तुलसीदास कृत रामायण के अनुसार श्री राम-रावण युद्ध के समय रावण को अपनी सहायता के लिए अपने भाई अहिरावण की सहायता की आवश्यकता पड़ी। 
अहिरावण तंत्र-मंत्र का प्रकांड पंडित और मां भवानी का अनन्य भक्त था । वह अपने भाई रावण के सहायता के लिए प्रस्तुत हुआ और रावण को सुझाव दिया कि मैं श्रीराम एवं लक्ष्मण का ही अपहरण कर लूंगा तो युद्ध स्वत: ही समाप्त हो जाएगा।


अहिरावण अपनी माया से सुग्रीव का भेष बना कर राम और लक्षमण के विश्राम स्थल पर पहुंचा जब श्रीराम एवं लक्ष्मण सो रहे थे अहिरावण सोने की अवस्था में ही श्रीराम एवं लक्ष्मण को पातळ लोक बलि चढ़ाने के लिए ले गया । 
शिविर में जब राम और लक्ष्मण नहीं मिले तो हनुमान जी उनकी खोज करते हुए पातळ पुरी पहुचे ! 
द्वार पे रक्षक के रूप में मकरध्वज से युद्ध कर और उसे हराकर जब वह पातालपुरी के महल में पहुंचे तो श्रीराम एवं लक्ष्मण जी को बंधक-अवस्था में पाया। 



वहां पञ्च दिशाओं में  पांच दीपक जल रहे थे और मां भवानी के सम्मुख श्रीराम एवं लक्ष्मण की बलि देने की पूरी तैयारी हो चुकी थी । तभी आकाश वाणी हुई कि अहिरावण का अंत करना है तो इन पांच दीपकों को एक साथ एक ही समय में बुझाना होगा। यह रहस्य ज्ञात होते ही हनुमान जी ने पंचमुखी हनुमान का रूप धारण किया।
उत्तर दिशा में वराह मुख,  
दक्षिण दिशा में नरसिम्ह मुख, 
पश्चिम में गरुड़ मुख, 
आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं 
पूर्व दिशा में हनुमान मुख। 

इन पांच मुखों को धारण कर उन्होंने एक साथ सारे दीपकों को बुझाकर अहिरावण का अंत किया और श्रीराम-लक्ष्मण को मुक्त किया। 



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