ज़रूर जानिए रामायण मे शत्रुघ्न की भूमिका, योगदान और महत्व


कुछ बुद्धिजीविओं  का मानना है की रामायण में शत्रुघ्न की भूमिका कुछ खास नहीं है ये पोस्ट उन लोगों को जरूर पढ़नी  चाहिए!

रामायण और महाभारत समुद्र की तरह ही है जितना ही आप उसमे जाओगे उतने ही मोती रूपी जानकारियाँ मिलती जाएँगी| वैसे तो वाल्मीकि जी द्वारा रामायण श्रीराम जी को केंद्रित मान के लिखी है इसलिये संपूर्ण रामायण भी उन्ही के इर्द गिर्द ही है और शत्रुघ्न के बारे मे ज़्यादा जानकारी नहीं मिलती लेकिन इसका मतलब ये नहीं की शत्रुघ्न की भूमिका लक्ष्मण और भरत से कम है|

शत्रुघ्न का चरित्र अत्यन्त विलक्षण था। ये मौन सेवाव्रती थे। बचपन से भरत का अनुगमन तथा सेवा ही इनका मुख्य व्रत था। ये मितभाषी, सदाचारी, सत्यवादी, विषय-विरागी तथा भगवान श्री राम के दासानुदास थे। जिस प्रकार लक्ष्मण हाथ में धनुष लेकर राम की रक्षा करते हुए उनके पीछे चलते थे, उसी प्रकार शत्रुघ्न भी भरत के साथ रहते थे। जब भरत के मामा युधाजित भरत को अपने साथ ले जा रहे थे, तब शत्रुघ्न भी उनके साथ ननिहाल चले गये। इन्होंने माता-पिता, भाई, नव-विवाहिता पत्नी सबका मोह छोड़कर भरत के साथ रहना और उनकी सेवा करना ही अपना कर्तव्य मान लिया था।





शत्रुघ्न भी अपने अन्य भाईयों के समान ही राम से बहुत स्नेह करते थे। जब भरत के साथ ननिहाल से लौटने पर उन्हें पिता के मरण और लक्ष्मण, सीता सहित श्री राम के वनवास का समाचार मिला, तब इनका हृदय दु:ख और शोक से व्याकुल हो गया। उसी समय इन्हें सूचना मिली कि जिस क्रूरा और पापिनी के षड्यन्त्र से श्री राम को वनवास हुआ, वह वस्त्राभूषणों से सज-धजकर खड़ी है, तब ये क्रोध से व्याकुल हो गये। ये मन्थरा की चोटी पकड़कर उसे आँगन में घसीटने लगे। इनके लात के प्रहार से उसका कूबर टूट गया और सिर फट गया उसकी दशा देखकर भरत को दया आ गयी और उन्होंने उसे छुड़ा दिया। इस घटना से शत्रुघ्न की श्री राम के प्रति दृढ़ निष्ठा और भक्ति का परिचय मिलता है। चित्रकूट से श्री राम की पादुकाएँ लेकर लौटते समय जब शत्रुघ्न श्री राम से मिले, तब इनके तेज़ स्वभाव को जानकर भगवान श्री राम ने कहा- 'शत्रुघ्न! तुम्हें मेरी और सीता की शपथ है, तुम माता कैकेयी की सेवा करना, उन पर कभी भी क्रोध मत करना'।

जब रघुनाथ 14 वर्षों तक वनवास पे थे तब शत्रुघ्न ने भरत जी का अयोध्या में पूरा साथ दिया क्यूंकि भरत जी भी श्री राम  जी की चरन पादुका को सिंघासन पे रख के दूर नंदीग्राम कुटिया में  वनवासी के रूप में जीवन यापन करने लगे थे।  वो शत्रुघ्न ही थे जिन्होंने अयोध्या में रहते हुए राज्य के कार्य को सुचारु रूप से चलने में सहायता की एक निडर  सिपाही की तरह  राज्य की रक्षा की और अपनी सभी माताओं को अन्य तीन भाइयों के न होने की कमी नहीं महसूस होने दी।

शत्रुघ्न का शौर्य भी अनुपम था। सीता-वनवास के बाद एक दिन ऋषियों ने भगवान श्री राम की सभा में उपस्थित होकर लवणासुर के अत्याचारों का वर्णन किया और उसका वध करके उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। शत्रुघ्न ने भगवान श्री राम की आज्ञा से वहाँ जाकर प्रबल पराक्रमी लवणासुर का वध किया और मधुपुरी बसाकर वहाँ बहुत दिनों तक शासन किया। भगवान श्री राम के परमधाम पधारने के समय मथुरा में अपने पुत्रों का राज्यभिषेक करके शत्रुघ्न अयोध्या पहुँचे। श्री राम के पास आकर और उनके चरणों में प्रणाम करके इन्होंने विनीत भाव से कहा- 'भगवन! मैं अपने दोनों पुत्रों को राज्यभिषेक करके आपके साथ चलने का निश्चय करके ही यहाँ आया हूँ। आप अब मुझे कोई दूसरी आज्ञा न देकर अपने साथ चलने की अनुमति प्रदान करें।' भगवान श्री राम ने शत्रुघ्न की प्रार्थना स्वीकार की और वे श्री रामचन्द्र के साथ ही साकेत पधारे।


In English

Shatrughna and Laxman were sons of the second queen Sumitra, wife of Dashratha, the King of Ayodhya. Shatrughna mirrored many aspects of Lakshmana's personality and character.Lakshman followed the footsteps of the paragon of truth, Rama while Shatrughna was equally attached to the unworldly and devoted Bharat, son of Kaikey, and followed him everywhere for he knew that Bharat was a complete devotee of Rama. In Bharat's life, there was no other goal loftier than service to his brother. 

During the Sita Swayamvar, when Sita was wedded to Rama, Raja Janak arranged for the wedding of Shatrughna to Shrutkirti, the daughter of his brother Kushadhvaja. Bharat was married to Mandavi and Urmila to Lakshman. 

Shatrughna asks Bharata why even Lakshmana could not prevent Dasaratha from sending Rama to the forest. Meanwhile, when Manthara arrives at the scen, Shatrughna seizes her with his powerful hand, threatens to punish her and abuses Kaikeyi too. When Kaikeyi pleads for mercy with her son, Bharata intervenses and Shatrughna releases Manthara. (Valmiki Ramayana Ayodhya Kanda, Chapter 78). 

When Bharat placed Rama's charan paduka (sandals), on the throne and went to live in far a away Nandigrama in a straw hut, he lived there for fourteen years, awaiting the arrival of Shri Rama. It was Shatrughna who assumed the mantle of royal duties and the running of the Kingdom. 

For fourteen years he ruled, like an alert soldier and administrator. He made sure that the Queen mothers did not feel the absence of their sons. His guru had justly named him (as Shatrugna) for he very ably overpowered all evil forces and enemies of the state and the subjects. 

After fourteen years, Rama Lakshman and Sita returned to Ayodhya. Guru Vashistha arranged for the coronation of Rama. In those days, Daityas Madhu's son Lavanasura was creating havoc in Madhuvan (forest called Madhu), making the subjects very unhappy. Shatrughna then told Rama, that the world knew the many ways in which Lakshman had served Him. Shatrughna requested Rama to give Shatrughna a chance to prove his Kshatriya (warrior caste) value by killing Lavanasura and serving Ayodhya.. Rama gave him the permission. Shatrughna killed Lavanasura and established the kingdom of Madhupur, which later came to be known as Mathura. Raja Rama made Shatrughna the king of Madhupur. 

When Rama conducted the Ashwamegh Yagna (horse sacrifice where a horse is let loose and whichever kingdom that horse crosses into has to accept the owner of the horse as their lord or then fight with them), it was Shatrughna who leaded the horse Dig Vijay and made the yagna successful. Shatrughna was also a part incarnation of Vishnu. 

By looking after the welfare of the family, the queens, the subjects and the kingdom, Shatrughna gave a stellar proof of his ideal character. He is equal to Bharat and Rama in his goodness and nobility. 






Source: bharatdiscovery.org and Sapan Saxena

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