नन्ही गिलहरी का रामसेतु मे सहयोग सुनके भावविभोर हो जाएँगे आप, ज़रूर पढ़ें -

जब पूरी सेना रामसेतु बनाने के कार्य व्यस्त थी,  उसी समय लक्ष्मण ने भगवान राम को काफी देर तक एक ही दिशा में निहारते हुए देख पूछा भैया आप क्या देख रहें इतनी देर से ?

भगवान राम ने इशारा करते हुए बताया कि वो देखो लक्ष्मण एक गिलहरी बार – बार समुद्र के किनारे जाती है और रेत पर लोटपोट करके रेत को अपने शरीर पर चिपका लेती है। जब रेत उसके शरीर पर चिपक जाता है फिर वह सेतु पर जाकर अपना सारा रेत सेतु पर झाड़ आती है। वह काफी देर से यही कार्य कर रही है। लक्ष्मण जी बोले प्रभु वह समुन्द्र में क्रीड़ा का आनंद ले रही है ओर कुछ नहीं।




भगवान राम ने कहा, नहीं लक्ष्मण तुम उस गिलहरी के भाव को समझने का प्रयास करो। चलो आओ उस गिलहरी से ही पूछ लेते हैं की वह क्या कर रही है।  दोनों भाई उस गिलहरी के निकट गए। भगवान राम ने गिलहरी से पूछा की तुम क्या कर रही हो ? गिलहरी ने जवाब दिया कि कुछ भी नहीं प्रभु बस इस पुण्य कार्य में थोड़ा बहुत योगदान दे रही हूँ। भगवान राम को उत्तर देकर गिलहरी फिर से अपने कार्य के लिए जाने लगी, तो लक्ष्मण जी उसे टोकते हुए बोले की तुम्हारे रेत के कुछ कण डालने से क्या होगा ?


गिलहरी बोली की आप सत्य कह रहे हैं। में सृष्टि की इतनी लघु प्राणी होने के कारण इस महान कार्य हेतु कर भी क्या सकती हूँ। मेरे कार्य का मूल्यांकन भी क्या होगा। प्रभु में यह कार्य किसी आकांक्षा से नहीं कर रही। यह कार्य तो राष्ट्र कार्य है, धर्म की अधर्म पर जीत का कार्य है। धर्म कार्य किसी एक व्यक्ति अथवा वर्ग का नहीं अपितु योग्यता अनुसार सम्पूर्ण समाज का होता है। जितना कार्य वह कर सके नि:स्वार्थ भाव से समाज को धर्म हित का कार्य करना चाहिए। मेरा यह कार्य आत्म संतुष्टि के लिए है। हाँ मुझे इस बात का खेद आवश्य है कि में सामर्थ्यवान एवं शक्तिशाली प्राणियों कि भाँति सहयोग नहीं कर पा रही।





भगवान राम गिलहरी की बात सुनकर भाव विभोर हो उठे। भगवान राम ने उस छोटी सी गिलहरी को अपनी हथेली पर बैठा लिया और उसके शरीर पर प्यार से हाथ फेरने लगे। भगवान राम का स्पर्श पाते ही गिलहरी का जीवन धन्य हो गया।हमारी मातृभूमि की सेवा का कार्य भी पुनीत राष्ट्रीय कार्य है। इस कार्य में हमारे समाज के प्रत्येक नागरिक का योगदान आवश्य होना चाहिए।





Source: hindvicharak.in

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