रामभक्त हनुमानजी के जन्म की कहानी

हनुमान की माता अंजनि के पूर्व जन्म की कहानी
कहते हैं कि माता अंजनि पूर्व जन्म में देवराज इंद्र के दरबार में अप्सरा पुंजिकस्थला थीं। ‘बालपन में वो अत्यंत सुंदर और स्वभाव से चंचल थी एक बार अपनी चंचलता में ही उन्होंने तपस्या करते एक तेजस्वी ऋषि के साथ अभद्रता कर दी थी ।
गुस्से में आकर ऋषि ने पुंजिकस्थला को श्राप दे दिया कि जा तू वानर की तरह स्वभाव वाली वानरी बन जा, ऋषि के श्राप को सुनकर पुंजिकस्थला ऋषि से क्षमा याचना मांगने लगी, तब ऋषि ने कहा कि तुम्हारा वह रूप भी परम तेजस्वी होगा।
तुमसे एक ऐसे पुत्र का जन्म होगा जिसकी कीर्ति और यश से तुम्हारा नाम युगों-युगों तक अमर हो जाएगा, अंजनि को वीर पुत्र का आशीर्वाद मिला।

ऋषि के श्राप से त्रेता युग मे अंजना मे नारी वानर के रूप मे धरती पे जन्म लेना पडा
इंद्र जिनके हाथ में पृथ्वी के सृजन की कमान है, स्वर्ग में स्थित इंद्र के दरबार (महल) में हजारों अप्सरा (सेविकाएं) थीं, जिनमें से एक थीं अंजना (अप्सरा पुंजिकस्थला) अंजना की सेवा से प्रसन्न होकर इंद्र ने उन्हें मनचाहा वरदान मांगने को कहा, अंजना ने हिचकिचाते हुए उनसे कहा कि उन पर एक तपस्वी साधु का श्राप है, अगर हो सके तो उन्हें उससे मुक्ति दिलवा दें। इंद्र ने उनसे कहा कि वह उस श्राप के बारे में बताएं, क्या पता वह उस श्राप से उन्हें मुक्ति दिलवा दें।

अंजना ने उन्हें अपनी कहानी सुनानी शुरू की, अंजना ने कहा ‘बालपन में जब मैं खेल रही थी तो मैंने एक वानर को तपस्या करते देखा, मेरे लिए यह एक बड़ी आश्चर्य वाली घटना थी, इसलिए मैंने उस तपस्वी वानर पर फल फेंकने शुरू कर दिए, बस यही मेरी गलती थी क्योंकि वह कोई आम वानर नहीं बल्कि एक तपस्वी साधु थे।  

मैंने उनकी तपस्या भंग कर दी और क्रोधित होकर उन्होंने मुझे श्राप दे दिया कि जब भी मुझे किसी से प्रेम होगा तो मैं वानर बन जाऊंगी। मेरे बहुत गिड़गिड़ाने और माफी मांगने पर उस साधु ने कहा कि मेरा चेहरा वानर होने के बावजूद उस व्यक्ति का प्रेम मेरी तरफ कम नहीं होगा’। अपनी कहानी सुनाने के बाद अंजना ने कहा कि अगर इंद्र देव उन्हें इस श्राप से मुक्ति दिलवा सकें तो वह उनकी बहुत आभारी होंगी। इंद्र देव ने उन्हें कहा कि इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए अंजना को धरती पर जाकर वास करना होगा, जहां वह अपने पति से मिलेंगी। शिव के अवतार को जन्म देने के बाद अंजना को इस श्राप से मुक्ति मिल जाएगी।

इंद्र की बात मानकर अंजना धरती पर आईं और केसरी से विवाह - इंद्र की बात मानकर अंजना धरती पर चली आईं, एक शाप के कारण उन्हें नारी वानर के रूप मे धरती पे जन्म लेना पडा। उस शाप का प्रभाव शिव के अन्श को जन्म देने के बाद ही समाप्त होना था। और एक शिकारन के तौर पर जीवन यापन करने लगीं। जंगल में उन्होंने एक बड़े बलशाली युवक को शेर से लड़ते देखा और उसके प्रति आकर्षित होने लगीं, जैसे ही उस व्यक्ति की नजरें अंजना पर पड़ीं, अंजना का चेहरा वानर जैसा हो गया। अंजना जोर-जोर से रोने लगीं, जब वह युवक उनके पास आया और उनकी पीड़ा का कारण पूछा तो अंजना ने अपना चेहरा छिपाते हुए उसे बताया कि वह बदसूरत हो गई हैं। अंजना ने उस बलशाली युवक को दूर से देखा था लेकिन जब उसने उस व्यक्ति को अपने समीप देखा तो पाया कि उसका चेहरा भी वानर जैसा था।

अपना परिचय बताते हुए उस व्यक्ति ने कहा कि वह कोई और नहीं वानर राज केसरी हैं जो जब चाहें इंसानी रूप में आ सकते हैं। अंजना का वानर जैसा चेहरा उन दोनों को प्रेम करने से नहीं रोक सका और जंगल में केसरी और अंजना ने विवाह कर लिया।
केसरी एक शक्तिशाली वानर थे जिन्होने एक बार एक भयंकर हाथी को मारा था। उस हाथी ने कई बार असहाय साधु-संतों को विभिन्न प्रकार से कष्ट पँहुचाया था। तभी से उनका नाम केसरी पड गया, "केसरी" का अर्थ होता है सिंह। उन्हे "कुंजर सुदान"(हाथी को मारने वाला) के नाम से भी जाना जाता है।

अंजना और मतंग ऋषि - पुराणों में कथा है कि केसरी और अंजना ने विवाह कर लिया पर संतान सुख से वंचित थे । अंजना अपनी इस पीड़ा को लेकर मतंग ऋषि के पास गईं, तब मंतग ऋषि ने उनसे कहा-पप्पा (कई लोग इसे पंपा सरोवर भी कहते हैं) सरोवर के पूर्व में नरसिंह आश्रम है, उसकी दक्षिण दिशा में नारायण पर्वत पर स्वामी तीर्थ है वहाँ जाकर उसमें स्नान करके, बारह वर्ष तक तप एवं उपवास करने पर तुम्हें पुत्र सुख की प्राप्ति होगी।

अंजना को पवन देव का वरदान - अंजना ने मतंग ऋषि एवं अपने पति केसरी से आज्ञा लेकर बारह वर्ष तक तप किया था, एक बार अंजना ने “शुचिस्नान” करके सुंदर वस्त्राभूषण धारण किए। तब वायु देवता ने अंजना की तपस्या से प्रसन्न होकर उस समय पवन देव ने उसके कर्णरन्ध्र में प्रवेश कर उसे वरदान दिया, कि तेरे यहां सूर्य, अग्नि एवं सुवर्ण के समान तेजस्वी, वेद-वेदांगों का मर्मज्ञ, विश्वन्द्य महाबली पुत्र होगा।

अंजना को भगवान शिव का वरदान - अंजना ने मतंग ऋषि एवं अपने पति केसरी से आज्ञा लेकर नारायण पर्वत पर स्वामी तीर्थ के पास, अपने आराध्य शिव की तपस्या में मग्न थीं । शिव की आराधना कर रही थीं तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें वरदान मांगने को कहा, अंजना ने शिव को कहा कि साधु के श्राप से मुक्ति पाने के लिए उन्हें शिव के अवतार को जन्म देना है, इसलिए शिव बालक के रूप में उनकी कोख से जन्म लें। ‘तथास्तु’ कहकर शिव अंतर्ध्यान हो गए।



हनुमान जी का जन्म त्रेता युग मे अंजना के पुत्र के रूप मे, चैत्र शुक्ल की पूर्णिमा की महानिशा में हुआ। अंजना के पुत्र होने के कारण ही हनुमान जी को अंजनेय नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ होता है 'अंजना द्वारा उत्पन्न'।
उनका एक नाम पवन पुत्र भी है। जिसका शास्त्रों में सबसे ज्यादा उल्लेख मिलता है। शास्त्रों में हनुमानजी को वातात्मज भी कहा गया है, वातात्मज यानी जो वायु से उत्पन्न हुआ हो।




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