महर्षि वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 30 - संस्कृत
Read SHRIRAMCHARITMANAS in Awadhi Hindi English | Valmiki Ramayana in Sanskrit & Hindi | श्रीरामचरितमानस, वाल्मीकि रामायण - मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम
महर्षि वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 30 संस्कृत-हिंदी | Valmiki Ramayan Baalkand Sarg 30 in Sanskrit & Hindi
महर्षि वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 29 संस्कृत-हिंदी | Valmiki Ramayan Baalkand Sarg 29 in Sanskrit & Hindi
महर्षि वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 29 - संस्कृत
Maharishi Valmiki Ramayan Baalkand Sarg 29 - Sanskrit
महर्षि वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 28 संस्कृत-हिंदी | Valmiki Ramayan Baalkand Sarg 28 in Sanskrit & Hindi
महर्षि वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 28 - संस्कृत
Maharishi Valmiki Ramayan Baalkand Sarg 28 - Sanskrit
श्रीमद्वाल्मीकियरामायणे बालकाण्डे अष्टाविंशः सर्गः ॥१-२८॥
प्रतिगृह्य ततोऽस्त्राणि प्रहृष्टवदनः शुचिः ।
गच्छन्नेव च काकुत्स्थो विश्वामित्रमथाब्रवीत् ॥१-२८-१॥
गृहीतास्त्रोऽस्मि भगवन् दुराधर्षः सुरैरपि ।
अस्त्राणां त्वहमिच्छामि संहारान् मुनिपुङ्गव ॥१-२८-२॥
एवं ब्रुवति काकुत्स्थे विश्वामित्रो महातपाः ।
संहारान् व्याजहाराथ धृतिमान् सुव्रतः शुचिः ॥१-२८-३॥
सत्यवन्तं सत्यकीर्तिं धृष्टं रभसमेव च ।
प्रतिहारतरं नाम पराङ्मुखमवाङ्मुखम् ॥१-२८-४॥
लक्ष्यालक्ष्याविमौ चैव दृढनाभसुनाभकौ ।
दशाक्षशतवक्त्रौ च दशशीर्षशतोदरौ ॥१-२८-५॥
पद्मनाभमहानाभौ दुन्दुनाभसुनाभकौ ।
ज्योतिषं शकुनं चैव नैरास्यविमलावुभौ ॥१-२८-६॥
यौगन्धरविनिद्रौ च दैत्यप्रमथनौ तथा ।
शुचिबाहुर्महाबाहुर्निष्कलिर्विरुचस्तथा ।
सार्चिर्माली धृतिमाली वृत्तिमान् रुचिरस्तथा ॥१-२८-७॥
पित्र्यः सौमनसश्चैव विधूतमकरावुभौ ।
परवीरं रतिं चैव धनधान्यौ च राघव ॥१-२८-८॥
कामरूपं कामरुचिं मोहमावरणं तथा ।
जृम्भकं सर्वनाभं च पन्थनवरुणौ तथा ॥१-२८-९॥
कृशाश्वतनयान् राम भास्वरान् कामरूपिणः ।
प्रतीच्छ मम भद्रं ते पात्रभूतोऽसि राघव ॥१-२८-१०॥
बाढमित्येव काकुत्स्थः प्रहृष्टेनान्तरात्मना ।
दिव्यभास्वरदेहाश्च मूर्तिमन्तः सुखप्रदाः ॥१-२८-११॥
केचिदङ्गारसदृशाः केचिद् धूमोपमास्तथा ।
चन्द्रार्कसदृशाः केचित् प्रह्वाञ्जलिपुटास्तथा ॥१-२८-१२॥
रामं प्राञ्जलयो भूत्वाब्रुवन् मधुरभाषिणः ।
इमे स्म नरशार्दूल शाधि किं करवाम ते ॥१-२८-१३॥
गम्यतामिति तानाह यथेष्टं रघुनन्दनः ।
मानसाः कार्यकालेषु साहाय्यं मे करिष्यथ ॥१-२८-१४॥
अथ ते राममामन्त्र्य कृत्वा चापि प्रदक्षिणम् ।
एवमस्त्विति काकुत्स्थमुक्त्वा जग्मुर्यथागतम् ॥१-२८-१५॥
स च तान् राघवो ज्ञात्वा विश्वामित्रं महामुनिम् ।
गच्छन्नेवाथ मधुरं श्लक्ष्णं वचनमब्रवीत् ॥१-२८-१६॥
किमेतन्मेघसंकाशं पर्वतस्याविदूरतः ।
वृक्षखण्डमितो भाति परं कौतूहलं हि मे ॥१-२८-१७॥
दर्शनीयं मृगाकीर्णं मनोहरमतीव च ।
नानाप्रकारैः शकुनैर्वल्गुभाषैरलङ्कृतम् ॥१-२८-१८॥
निःसृताःस्मो मुनिश्रेष्ठ कान्ताराद् रोमहर्षणात् ।
अनया त्ववगच्छामि देशस्य सुखवत्तया ॥१-२८-१९॥
सर्वं मे शंस भगवन् कस्याश्रमपदं त्विदम् ।
संप्राप्ता यत्र ते पापा ब्रह्मघ्ना दुष्टचारिणः ॥१-२८-२०॥
तव यज्ञस्य विघ्नाय दुरात्मानो महामुने ।
भगवंस्तस्य को देशः सा यत्र तव याज्ञिकी ॥१-२८-२१॥
रक्षितव्या क्रिया ब्रह्मन् मया वध्याश्च राक्षसाः ।
एतत् सर्वं मुनिश्रेष्ठ श्रोतुमिच्छाम्यहं प्रभो ॥१-२८-२१॥
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये बालकाण्डे अष्टाविंशः सर्गः ॥१-२८॥
महर्षि वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 27 संस्कृत-हिंदी | Valmiki Ramayan Baalkand Sarg 27 in Sanskrit & Hindi
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