महर्षि वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 27 - संस्कृत
Read SHRIRAMCHARITMANAS in Awadhi Hindi English | Valmiki Ramayana in Sanskrit & Hindi | श्रीरामचरितमानस, वाल्मीकि रामायण - मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम
महर्षि वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 27 संस्कृत-हिंदी | Valmiki Ramayan Baalkand Sarg 27 in Sanskrit & Hindi
महर्षि वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 26 संस्कृत-हिंदी | Valmiki Ramayan Baalkand Sarg 26 in Sanskrit & Hindi
महर्षि वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 26 - संस्कृत
Maharishi Valmiki Ramayan Baalkand Sarg 26 - Sanskrit
महर्षि वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 25 संस्कृत-हिंदी | Valmiki Ramayan Baalkand Sarg 25 in Sanskrit & Hindi
महर्षि वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 25 - संस्कृत
Maharishi Valmiki Ramayan Baalkand Sarg 25 - Sanskrit
महर्षि वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 24 संस्कृत-हिंदी | Valmiki Ramayan Baalkand Sarg 24 in Sanskrit & Hindi
महर्षि वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 24 - संस्कृत
Maharishi Valmiki Ramayan Baalkand Sarg 24 - Sanskrit
महर्षि वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 23 संस्कृत-हिंदी | Valmiki Ramayan Baalkand Sarg 23 in Sanskrit & Hindi
महर्षि वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 23 - संस्कृत
Maharishi Valmiki Ramayan Baalkand Sarg 23 - Sanskrit
श्रीमद्वाल्मीकियरामायणे बालकाण्डे त्रयोविंशः सर्गः ॥१-२३॥
प्रभातायां तु शर्वर्यां विश्वामित्रो महामुनिः ।
अभ्यभाषत काकुत्स्थं शयानं पर्णसंस्तरे ॥१-२३-१॥
कौसल्या सुप्रजा राम पूर्वा संध्या प्रवर्तते ।
उत्तिष्ठ नरशार्दूल कर्तव्यं दैवमाह्निकम् ॥१-२३-२॥
तस्यर्षेः परमोदारं वचः श्रुत्वा नरोत्तमौ ।
स्नात्वा कृतोदकौ वीरौ जेपतुः परमं जपम् ॥१-२३-३॥
कृताह्निकौ महावीर्यौ विश्वामित्रं तपोधनम् ।
अभिवाद्यातिसंहृष्टौ गमनायाभितस्थतुः ॥१-२३-४॥
तौ प्रयान्तौ महावीर्यौ दिव्यां त्रिपथगां नदीम् ।
ददृशाते ततस्तत्र सरय्वाः संगमे शुभे ॥१-२३-५॥
तत्राश्रमपदं पुण्यमृषीणां भावितात्मनाम् ।
बहुवर्षसहस्राणि तप्यतां परमं तपः ॥१-२३-६॥
तं दृष्ट्वा परमप्रीतौ राघवौ पुण्यमाश्रमम् ।
ऊचतुस्तं महात्मानं विश्वामित्रमिदं वचः ॥१-२३-७॥
कस्यायमाश्रमः पुण्यः को न्वस्मिन्वसते पुमान् ।
भगवञ्श्रोतुमिच्छावः परं कौतूहलं हि नौ ॥१-२३-८॥
तयोस्तद्वचनं श्रुत्वा प्रहस्य मुनिपुङ्गवः ।
अब्रवीच्छ्रूयतां राम यस्यायं पूर्व आश्रमः ॥१-२३-९॥
कन्दर्पो मूर्तिमानासीत्काम इत्युच्यते बुधैः ।
तपस्यन्तमिह स्थाणुं नियमेन समाहितम् ॥१-२३-१०॥
कृतोद्वाहं तु देवेशं गच्छन्तं समरुद्गणम् ।
धर्षयामास दुर्मेधा हुंकृतश्च महात्मना ॥१-२३-११॥
अवध्यातश्च रुद्रेण चक्षुषा रघुनन्दन ।
व्यशीर्यन्त शरीरात् स्वात् सर्वगात्राणि दुर्मतेः ॥१-२३-१२॥
तस्य गात्रं हतं तत्र निर्दग्धस्य महात्मना ।
अशरीरः कृतः कामः क्रोधाद् देवेश्वरेण ह ॥१-२३-१३॥
अनङ्ग इति विख्यातस्तदा प्रभृति राघव ।
स चाङ्गविषयः श्रीमान् यत्राङ्गं स मुमोच ह ॥१-२३-१४॥
तस्यायमाश्रमः पुण्यस्तस्येमे मुनयः पुरा ।
शिष्या धर्मपरा वीर तेषां पापं न विद्यते ॥१-२३-१५॥
इहाद्य रजनीं राम वसेम शुभदर्शन ।
पुण्ययोः सरितोर्मध्ये श्वस्तरिष्यामहे वयम् ॥१-२३-१६॥
अभिगच्छामहे सर्वे शुचयः पुण्यमाश्रमम् ।
इह वासः परोऽस्माकं सुखं वस्त्यामहे निशाम् ॥१-२३-१७॥
स्नाताश्च कृतजप्याश्च हुतहव्या नरोत्तम ।
तेषां संवदतां तत्र तपोदीर्घेण चक्षुषा ॥१-२३-१८॥
विज्ञाय परमप्रीता मुनयो हर्षमागमन् ।
अर्घ्यं पाद्यं तथाऽऽतिथ्यं निवेद्य कुशिकात्मजे ॥१-२३-१९॥
रामलक्ष्मणयोः पश्चादकुर्वन्नतिथिक्रियाम् ।
सत्कारं समनुप्राप्य कथाभिरभिरञ्जयन् ॥१-२३-२०॥
यथार्हमजपन् संध्यामृषयस्ते समाहिताः ।
तत्र वासिभिरानीता मुनिभिः सुव्रतैः सह ॥१-२३-२१॥
न्यवसन् सुसुखं तत्र कामाश्रमपदे तथा ।
कथाभिरभिरामभिरभिरमौ नृपात्मजौ ।
रमयामास धर्मात्मा कौशिको मुनिपुङ्गवः ॥१-२३-२२॥
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये बालकाण्डे त्रयोविंशः सर्गः ॥१-२३॥
महर्षि वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 22 संस्कृत-हिंदी | Valmiki Ramayan Baalkand Sarg 22 in Sanskrit & Hindi
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